।श्रीमदभगवत गीता उपदेश श्रीकृष्ण वाणी।


गीता में तो साफ स्पष्ट यही सब लिखा हुआ ही है, जिस ने मुझ भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर ली
उस को अन्य अन्य फिर अलग अलग की पूजा करने की कोई विधि विधान या आवश्यकता ही नहीं है।
और गीता में तो यह भी लिखा है,
जो जिस जिस देवता की पूजा करता है
मै ही यानि श्री कृष्ण भगवान उस की पूजा को दृढ़ करने का कार्य स्वम ही करते है,
यानि भगवान श्रीकृष्ण ही सभी देवी देवताओं में सवं ही होकर वह सब पूजा को स्वीकार करते है,
अलग नहीं है कुछ भी उनसे, वही सभी देवी देवताओं के रूप में विद्ययमान है।
और फिर यह भी कहा है
जो जिस देवता की पूजा करता तो है
पर वो सब होती अविधि पूर्वक ही है
लेकिन जो मुझे ही एक सर्वत्र भगवान जान कर माँ कर मुझ श्रीकृष्ण की पूजा करता है
वो कैसे भी हो वो पूजा सब विधि पूर्वक है।
साथ में बाकि अन्य देवी देवताओ की पूजा करने वाले
देव लोक में जाते तो है मृत्यु के बाद
लेकिन वहाँ से पुनः फिर लोट कर मृत्यु लोक में आते रहते है
अपने अपने कर्म फलो के अनुसार
क्युकि मनुष्य जिस भी देवी देवता की पूजा अर्चना करते है
वह किसी ना किसी स्वार्थ के अधीन हो कर ही करते है
तो यह उनकी सकाम भक्ति पूजा ही होती है
और सकाम पूजा भक्ति से मुक्ति मोक्ष नहीं मिलते
परन्तु जो मुझ श्रीकृष्ण की शरण में चला जाता है
अर्थ जो कोई भी भक्त मेरी भक्ति चाहे सकाम करें या प्रेम पूर्वक करें
वो सब ही मृत्यु के बाद गोलोक धाम जाते है
और पुनः लौटकर कभी नहीं आते इस जगत माया जंजाल में।
क्युकि हे पार्थ मेरे किसी भी भक्त का कभी अहित और विनाश नहीं होता।
गीता के अनुसार तो श्री कृष्ण भगवान के भक्त चार श्रेणी के होते है…..
आरत, अर्थार्थी, जग्यासु एवं ज्ञानी
यह सभी भक्त भगवान को प्रिय होते है
आरत__जो दुखी है।
अर्थार्थी__जो किसी कामना से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा भक्ति करते है।
जग्यासु___जो भगवान को जानने की इच्छा रखते है।
ज्ञानी___वो जो परम् भक्त है सब कुछ त्याग देते है।
यह सब ही गीता में लिखा है।
भगवान भावना और कर्म देखते है
आडम्बर दिखावा नहीं।।
।।कर्म प्रधान है।।
भगवान ने जब जब मनुष्य अवतार लिए
तो कर्म को प्रधानता दी
ना की उन्होंने हर समय भक्ति की सब कुछ त्याग कर सन्यास लिया।
भगवान ज़ब मनुष्य जन्म में अवतार लेते है
तो क्या वो भक्ति ही करते है नहीं न
वो भी कर्म ही करते है।
और मनुष्य को सीख देते है,
की अपना कर्म ही पूजा है
और कर्म के फल का त्याग ही सन्यास है
और कर्म करते करते ईश्वर का सदैव चिंतन और स्मरण करना ही यही परम् भक्ति है।।
शुभ दोपहरv
पूर्णिमा श्राद्ध पर सबको पितरों की कृपा मिलती रहे।
हरे कृष्ण.डॉ अर्चना श्रेया मुंबई