दिल में बसे हो ( रहस्यमई रोमांचक प्रेमकथा)



लेखिका हिमाद्री समर्थ
प्रकाशक – साहित्यागार जयपुर
समीक्षक – डॉ कंचना सक्सेना
हिमाद्री की नवीनतम प्रकाशित कृति “दिन में बसे हो” विधा की दृष्टि से पटकथा की श्रेणी में आती है यहां मैं सर्वप्रथम इस बात का उल्लेख करना अनिवार्य समझती हूं कि पटकथा लेखन के प्रयास कम लोग ही करते हैं आपका यह प्रयास नि:संदेश सराहनीय है । पटकथा के लिए आवश्यक तत्वों का इसमें पूर्ण परिवाक है ।कथानक , चरित्र -चित्रण , संवाद , एक्शन ,रोमांच एवं रहस्य का सुंदर निदर्शन है । पटकथा में प्रेम त्रिकोण का खूबसूरती से अंकन किया है ।संवादों का सुंदर संयोजन किया है जिससे शिल्प में पूर्ण कसावट है । कथा , आदि से अंत तक पाठक को बांधे रखती है । रहस्य और रोमांच से पूर्ण कहीं-कहीं एक्शन का भी प्रयोग हुआ है ।
विषय वस्तु की बुनावट दृश्यों में की गई है जो की पटकथा की दृष्टि से पूर्णतया सही है । दृश्यों में संवाद संक्षिप्त ,रोचक एवं कौतुहलोत्पादक है ।कथा में संघर्ष के साथ उसका समाधान भी प्रस्तुत किया गया है।
फ्लैश फारवर्ड के साथ फ्लैश बैक तकनीक का समावेश लेखिका का अद्भुत सूझबूझ का परिचायक है ।संवादों का यदि हम संप्रेषण की दृष्टि से मूल्यांकन करें तो लेखिका इसमें पूर्ण सफल रही है ।
स्क्रीन प्ले लेखन में लेखक बड़ी-बड़ी घटनाओं का स्थान और समय के हिसाब से संयोजित करता है। नाटक की तरह पटकथा में पात्रों का चरित्र होता है। नायक खलनायक होते हैं। द्वंद्व प्रतिद्वंद्व अथवा द्वंद्व टकराहट फिर समाधान।
पटकथा का ताना-बाना तीन महत्वपूर्ण घटनाओं के (कथानक , विषय वस्तु और पात्र) इर्द-गिर्द ही बुना जाता है ।
पटकथा लिखना ,किरदार गढ़ना और कहानी व दर्शकों के बीच एक मजबूत रिश्ता बनाना भी एक कला है । इस कला में हिमाद्री को पूर्ण सफलता मिली है ।
चित्रांकन पटकथा का सबसे अहम पहलू है ।उनका भावनाओं और संवेदनाओं के साथ रुचिकर होना अत्यंत आवश्यक है। पटकथा वस्तुतः विशिष्ट प्रारूप में लिखी एक ऐसी रचनात्मक कृति है जो पात्रों के क्रिया, कार्यों और संवादों को दर्शाती है ।
पटकथा लेखन का मूल मंत्र है भावनात्मक संघर्ष और गत्यात्मकता। इन दोनों तत्वों के अभाव में कथा रोचक भी नहीं होगी । पटकथा की कहानी आकर्षक मनोरंजक और दर्शकों के लिए प्रासंगिक होनी चाहिए। एक संघर्ष की बुनावट ,एक चरमोत्कर्ष और एक समाधान । विविध दृश्य घटना प्रसंग विषय का सिलसिलेवार होना, मसालेदार सामग्री ,दर्शक को बांधे रखें ।
कथा का प्रारंभ गुलाबी नगरी से होता है लेकिन बाद में सारी कथा मुंबई महानगर के इर्द-गिर्द बुनी गई है कहानी का त्रिकोण मुख्यतः देव राधिका और कृष्णा के बीच रचा गया है । महत्वाकांक्षी लेखिका राधिका मूल रूप से अपने लेखन के प्रति जागरुक है लेकिन पेशे से पुलिस अधिकारी देव न सिर्फ राधिका से बेरहमी से पेश आता है वरन उसके प्रति रवैया भी उपेक्षा पूर्ण रखता है । राधिका अपनी इस पीड़ा को इन शब्दों में व्यक्त करती है, ” कोई अपना ही दर्द से मेरे बेखबर हो रहा है।”
समय-समय पर देव के उपेक्षा पूर्ण आचरण से आहत उसे इसका पूरी तरह संज्ञान है कि मुंबई महानगर में जहां चारों ओर पानी ही पानी है जहां सपने पूरे करने के लिए पानी में उतरना भी पड़ता है और तैरना भी ।
देव के चरित्र में अनेक विशेषताओं को समाहित करते हुए अवसरवादिता पर सुंदर कटाक्ष लेखिका ने राधिका के माध्यम से करवाया है – “वाह देव वाह ! लड़की पटानी है तो उसकी पसंद से प्यार करो और जब वो बीवी बन जाए तो उसी के सामने उसी की पसंद को त्यागने की शर्त रख दो ।”
देव और राधिका के आपसी मनमुटाव का लेखिका ने बड़ा सजीव चित्रण किया है- “याद करो अपने सपनों को पूरा करने के चक्कर में तुमने इस घर की खुशियों को आग लगा दी ।”
कृष्ण राधिका की कहानी को फिल्म के लिए चुना इसकी कोई खास वजह- ‘दिल में बस गई ‘कृष्ण जवाब देता है।
परिस्थिति के अनुकूल गानों की संरचना में लेखिका की दक्षता दर्शनीय है- प्यास बुझे ना यूं, तपता अंगारा मैं – उपमाओं के माध्यम से दिल के भावों का बखूबी अंकन – महिला बोल्ड लेखन के क्रम में हिमाद्री जी की बेबाकी का यहां हम उल्लेख कर सकते हैं।
एक और महानगरीय चकाचौंध ,पाश्चात्य सभ्यता से प्रेरित पीढ़ी का पार्टी डांस मद्यपान आदि का चित्रण है तो दूसरी ओर सस्पेंस का समावेश कहानी के सौंदर्य में श्री वृद्धि करता है ।
राधिका का अचानक गायब हो जाना मूल कथा को गति देता है ।युवा पीढ़ी आज पाश्चात्य सभ्यता से प्रेरित हो दिग्भ्रमित हो रहे हैं , कारण है कि वह ड्रग्स की शिकार हो अनैतिक कृत्य करने से भी नहीं चूकती। लेकिन लेखिका मूल रूप से आज जीवन के हर पहलू से रूबरू करा कर पटकथा में हर संभव जान डालती हैं ।
सस्पेंस ड्रामा थ्रिलर सब विषय वस्तु को बांधे रखता है बीच-बीच में गीतों से कहानी में रसान्विति होती चलती है।
एक चेहरे पर अनेक चेहरे लिए देव की असल सूरत का भान तब होता है जब मानसी एक षड्यंत्र रचकर राधिका और कृष्ण का एक्सीडेंट करवाती है अस्पताल में देव राधिका को जान कहकर संबोधित करता है तब राधिका का जवाब दृष्टव्य है , “ओ माय गॉड ! जान… जो इंसान अपनी पत्नी को जान से मारना चाहता है वह उसे जान बोल रहा है … हैट्स ऑफ यू एंड यू टू मानसी।
अंग्रेजी का समानांतर प्रयोग कथा को गति प्रदान करने के साथ उसे प्रभावी बना रहा है। जहां देव का असली चेहरा सामने आता है और उसका राधिका और कृष्णा पर बंदूक तानना उसकी दोहरे चरित्र को रेखांकित करता है वहीं राधिका के द्वारा अपने पति के प्रति सहानुभूति का भाव कहीं लेखिका की स्त्री सुलभ मनोवैज्ञानिकता को दर्शाता है ।
मानसी के संबंध में देव के उद्गार – जो औरत अपने पति की नहीं हो सकी वो किसकी सगी होगी? वहीं मानसी देव को अरेस्ट होता देख भागने की कोशिश करती है ।
वही लेखिका ने देव की भावनाओं को भी बखूबी उकेरा है – ये राधिका , इसने मेरी फीलिंग्स की कभी परवाह नहीं की, इसे तो हमेशा नेम फेम की चाहत रही है । इसने मुझसे शादी नहीं की – “अपनी कहानियों से शादी की है जिसके चक्कर में इसने हमारा बच्चा तक खो दिया । अरे ! ये औरत के नाम पर धब्बा है कलंक है ।”
लेखिका का व्यापक अनुभव इस पटकथा में सूत्र वाक्य के रूप में दृष्टिगत हुआ है – “मगर सर ! कौन सोच सकता है कि अपराधी हमारे अपनों के वश में हमारे साथ रहते हैं ।
युवा पीढ़ी की मानसिकता – आज को जिएं और भरपूर जिएं, रोशनी देव से कहती है -” तुम ठीक कह रहे हो देव, लेकिन आज किस्मत में हमारा साथ दिया है , सो लेट्स एंजॉय कहते हुए रोशनी व्हिस्की का गिलास देव की ओर बढ़ा देती है।
प्यार किसी से और शादी किसी से ! देव रोशनी से प्यार करता है और शादी राधिका से करता है।
आज की लड़कियों की मानसिकता का सटीक अंकन लेखिका की पहली दृष्टि का परिणाम है- वो तुम राधिका के पीछे पागल रहते थे इसलिए मुझे भी लगा एक टाइम पास रख लूं। वैसे रोहन टाइम पास के लिए परफेक्ट है क्योंकि कि उसे प्यार व्यार पे भरोसा नहीं।
पुरुष की दृष्टि में स्त्री का वजूद क्या है लेखिका की दृष्टि देखिए – कितनी अजीब बात है ना रोशनी । किरोड़ीमल की पत्नी पैसों के लिए बेवफा, राधिका अपने पैशन के लिए और तुम अपने जुनून के लिए आई हेट डर्टी गर्ल्स।”
ड्रग्स का बाजार किस प्रकार अपना रौद्र रूप धारण कर रहा है लेखिका की दृष्टि इससे भी अछूती नहीं – मैंथेफैंटामाइन ड्रग .. नाम तो सुना होगा ना। अरे ! तुम लड़कियां सब जानती हो । खैर.. इस ड्रग्स की खुशबू इंसान को हैवान बना देती है और अत्यधिक मात्रा यानी 14 ग्राम की मात्रा एक इंसान को सेकंड्स में हेवन वास बना देती है
अंत में लेखिका ने कृष्ण और राधिका का मिलन करवाकर पारंपरिक मिथ में आस्था व्यक्त की है ।राधिका तो युगों युगों तक कृष्ण की रहेगी कहते हुए देव कृष्णा को राधिका का हाथ देकर स्वयं दम तोड़ देता है ।
हिंदी के साथ अंग्रेजी का बराबर प्रयोग पटकथा को प्रभावी बनाता है। कहीं उर्दू शब्द का तड़का – रंगरेजां, दामन ,अबोहवा , मोहब्बत भाषिक सौंदर्य की अभिवृद्धि करता है ।
मानवीकरण की सुंदर छटा, रात जड़ को चेतन बनाना – रात दौड़कर गुजर गयी। कहीं उपमा अलंकार का प्रयोग – तुम भी ना! मुम्बई की बारिश से हो देव, कथा में चार चांद लगाता है।
समग्रत: लेखिका का पटकथा लेखन का प्रयास श्लाघनीय है । पटकथा लेखन के प्रति आपकी अभिरुचि शेष लेखिकाओं को इस दिशा में प्रवृत्त करेगी। इस कृति का पाठक वर्ग के साथ प्रोड्यूसर भी अभिनंदन करेंगे इसी आशा के साथ अनेकानेक शुभकामनाएं।