BiharPatnaपटना

देश में राहुल गांधी की लोकप्रियता का तूफ़ान मगर मुसलमान अब भी हाशिये पर

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रिपोर्टें – सैय्यद आसिफ इमाम काकवी

बिहारपटना;आज भारत की सियासत का सबसे बड़ा सच यह है कि राहुल गांधी की लोकप्रियता युवाओं से लेकर हर तबके के बीच लगातार आसमान छू रही है। उनका “वोट चोरी” अभियान अब किसी आंदोलन से कम नहीं, बल्कि एक जनक्रांति का रूप ले चुका है। सोशल मीडिया से लेकर जमीन तक हर जगह राहुल गांधी का नाम गूंज रहा है। इंस्टाग्राम पर उनके अभियान के वीडियो करोड़ों व्यूज़ बटोर रहे हैं। ट्विटर (X) पर ट्रेंड्स केवल राहुल गांधी के नाम पर हैं। गांव की चाय की टपरी पर बैठे लोगों की चर्चा हो या विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति की बहस हर जगह एक ही आवाज़ है, राहुल गांधी ही असली विपक्ष और असली उम्मीद हैं। उनकी रैलियों में उमड़ती भीड़ अब किसी पार्टी संगठन का चमत्कार नहीं, बल्कि जनता के दिल से उठी हुई पुकार है। सासाराम से लेकर सीमांचल तक, तूफानी बारिश में भी लाखों की भीड़ राहुल गांधी की आवाज़ सुनने जुट जाती है। यह नज़ारा बताता है कि “भारत जोड़ो यात्रा” ने उन्हें केवल नेता नहीं, बल्कि जनता का नेता बना दिया है। अब बिहार से शुरू हुई “वोटर अधिकार यात्रा” ने उनकी राजनीति को Political Validation दे दिया है। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से नीचे जा रहा है। 11 साल की सत्ता ने केवल नफ़रत, झूठ और “हिंदू खतरे में है” की खोखली राजनीति दी। बिहार हो या देश का कोई भी कोना, भाजपा-जेडीयू की सरकार ने केवल मुसलमानों को “घुसपैठिया” और “खतरा” बताकर जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकाया है। मगर अब हालात बदल रहे हैं। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जनता के बीच सीधी बात कर रहे हैं। कभी कांग्रेस और आरजेडी का समीकरण बिहार की राजनीति की सबसे मज़बूत नींव हुआ करता था। एक तरफ़ सवर्ण नेतृत्व, दूसरी तरफ़ दलितों का मज़बूत संगठन, और तीसरी तरफ़ मुसलमानों का बेपनाह समर्थन यही वह फॉर्मूला था जिसने कांग्रेस को अखिल भारतीय पहचान दी थी। लेकिन आज तस्वीर बिल्कुल उल्टी है। राहुल गांधी की लोकप्रियता आसमान छू रही है, तेजस्वी यादव जनता के बीच खड़े होकर नई राजनीति का सबक़ पढ़ रहे हैं, भीड़ उमड़ रही है, झंडे लहरा रहे हैं लेकिन इस पूरे मंज़रनामे में मुसलमान कहां है? क्या मुसलमान केवल भीड़ का हिस्सा है ? क्या उसकी भूमिका सिर्फ़ तालियाँ बजाने और नारे लगाने तक सीमित हो गई है? बिहार में “वोटर अधिकार यात्रा” ने जिस तरह माहौल बदला है, वह किसी क्रांति से कम नहीं। बुलेट मोटरसाइकिल की गड़गड़ाहट, मुस्कुराते और झूमते राहुल, पीछे भागते युवा यह नज़ारा कांग्रेस के बाउंस बैक का संकेत है। भीड़ में वह जुनून है जो कांग्रेस ने पिछले 35 सालों में खो दिया था। लेकिन इस उमड़ती भीड़ और गगनचुंबी नारों के बीच मुसलमान की आवाज़ कहीं सुनाई नहीं देती। न वह नेतृत्व में है, न बोर्ड के हिस्से में, नही मंच की रोशनी में। कांग्रेस-आरजेडी के बड़े-बड़े मंचों पर मुसलमान चेहरा नदारद है। यह वही तबका है जिसने कभी कांग्रेस को “अखिल भारतीय” दल बनाया था, मगर आज वही अपने ही घर में पराया हो गया है। क्या कांग्रेस और आरजेडी अपने पुराने फ़ॉर्मूले को फिर से जिंदा करने के लिए तैयार हैं? या फिर मुसलमान को फिर से केवल चुनावी “गिनती” तक सीमित कर दिया जाएगा ? भाजपा ने पिछले 11 सालों में मुसलमान को “घुसपैठिया” और “ख़तरा” बताकर समाज में बांटने की राजनीति की है। उसने असली मुद्दों – बेरोजगारी, शिक्षा, महंगाई – से जनता का ध्यान भटकाया। लेकिन कांग्रेस और आरजेडी की गलती यह रही कि उन्होंने मुसलमानों को बार-बार केवल एक “चुनावी मोहरा” समझा। न उन्हें टिकट दिया गया, न नीतियों में शामिल किया गया। मंच से मुसलमान का नाम तो लिया गया, मगर उसके नुमाइंदों को कभी जगह नहीं मिली आज ज़रूरत है कि मुसलमान भी अपने हक़ की आवाज़ खुद बुलंद करे। अगर वह चुप रहा, तो हमेशा सिर्फ़ वोट बैंक बनकर रह जाएगा। अगर वह हिस्सेदारी की मांग नहीं करेगा, तो उसकी पहचान सिर्फ़ “गिनती” बनकर रह जाएगी। मुसलमान को यह समझना होगा कि अब समय आ गया है कि वह अपने वोट को इज़्ज़त और साझेदारी में तब्दील करे। भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि मुसलमान को हमेशा “वोट बैंक” बनाकर पेश किया गया। चुनाव आते ही उसे गले लगाया जाता है, वादे किए जाते हैं, और जैसे ही नतीजे आते हैं, वह पीछे धकेल दिया जाता है। क्या उसकी भूमिका केवल “हुज़ूर, मेरा वोटवा ले लीजिए” तक ही है? क्या लोकतंत्र में उसकी पहचान सिर्फ़ एक चुनावी कार्ड और एक उंगली पर लगी स्याही तक सीमित हो चुकी है? यह न सिर्फ़ मुसलमान के साथ नाइंसाफी है, बल्कि लोकतंत्र के साथ भी ज़ुल्म है। लोकतंत्र तब मज़बूत होता है जब हर तबका केवल मतदाता नहीं, बल्कि फैसलों का साझेदार बने। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की राजनीति जनता के बीच जाकर बात करने वाली राजनीति है। यही नई राजनीति है। यही भविष्य है। लेकिन यह राजनीति तभी मुकम्मल होगी, जब मुसलमान उसमें बराबरी का साझेदार बनेगा। दलित, पिछड़े, बेरोजगार युवा और किसान के साथ मुसलमान भी अगर खड़ा होगा, तभी भाजपा की बाँटने वाली राजनीति को हराया जा सकेगा।कांग्रेस और आरजेडी को अब यह तय करना होगा क्या वह मुसलमानों को सिर्फ़ जुमलों और वादों से बहलाते रहेंगे, या उन्हें असली हिस्सेदारी और इज़्ज़त देंगे ?अगर कांग्रेस-आरजेडी ने यह सबक़ नहीं सीखा, तो मुसलमान का सवाल हमेशा अधूरा रहेगा और लोकतंत्र भी अधूरा आज मुसलमानों के साथ-साथ दलित, पिछड़े, बेरोज़गार युवा, किसान सब यह समझ चुके हैं कि भाजपा की राजनीति सिर्फ़ बांटने और डराने पर टिकी है। अगर हमें अपने हक़, अपनी इज़्ज़त और अपने भविष्य को बचाना है तो हमें मिलकर खड़ा होना होगा। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जैसे नेता ही वह नया विकल्प हैं जो बिहार से लेकर दिल्ली तक बदलाव की इबारत लिख सकते हैं। अब समय आ गया है कि वोट बंटवारे की सियासत को खत्म किया जाए। अल्पसंख्यकों को भी राजनीति में उनकी असली हिस्सेदारी मिले, टिकट मिले और हक़ीक़त में उनका वोट सम्मान के साथ गिना जाए। तभी वह दिन दूर नहीं जब बिहार से उठी यह लहर दिल्ली तक पहुंचेगी और राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे

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